कवि मनुज देपावत का आह्वान

जिसने जन-जन की पीड़ा को,
निज की पीड़ा कर पहचाना।
सदियों के बहते घावों पर,
मरहम करने का प्रण ठाना।
महलों से बढ़कर झौंपड़ियां,
जिसकी चाहत का हार बनी।
संग्राम किया नित सत्ता से,
वो कलम सदा तलवार बनी।[…]
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जिसने जन-जन की पीड़ा को,
निज की पीड़ा कर पहचाना।
सदियों के बहते घावों पर,
मरहम करने का प्रण ठाना।
महलों से बढ़कर झौंपड़ियां,
जिसकी चाहत का हार बनी।
संग्राम किया नित सत्ता से,
वो कलम सदा तलवार बनी।[…]
कोमल है कमजोर नहीं है,
यह कोई झूठा शौर नहीं है,
अतुलित ताकत है औरत की,
इस ताकत का छोर नहीं है,
कोमल है कमज़ोर नहीं है।
विधना ने वरदान दिया है,
ऊंचा आसन मान दिया है,
सृजना का अधिकार इसे दे,
माँ कह कर सम्मान दिया है।
इसके जैसा और नहीं है।
कोमल है कमज़ोर नहीं है।[…]
उर में सुख उपजाए अम्बुद
अमृत-जल बरसाए अम्बुद
वसुधा की सुन अरज गरज कर,
उमड़-घुमड़ कर आए अम्बुद।
सूरज की निर्दयता लख कर
कहती धरती बिलख बिलख कर
सोया कहाँ अरे ओ सुखकर
धरती का सुन राग भाग कर,
छोड़ गगन छिति धाए अम्बुद।[…]
म्हारी तिणखा इसड़ी राणी
(ज्यूं) तातै तवै पडंतो पाणी।
नातो हार-थकेलै वाळो, है कड़वी कैंटीन साथ में।
तणखां रै दिन दांईं नहचै, बिल इणरो आ जाय हाथ में।
उमर, उधारी रीत अेकसी, लीनी जकी पड़ै लौटाणी।।
म्हारी तिणखा इसड़ी राणी
(ज्यूं) तातै तवै पडंतो पाणी।[…]
जूत्यां में पगथळियां वांरी, कियां कटाणी, आ सीखां।
विश्वासां रै गळै कटारी, कियां चलाणी, आ सीखां।
लज्जा रै चिळतै लूगडि़यै, पैबंदां रै जाळ फंसेड़ी।
(इण) कारी वाळी नैं महतारी, नहीं बताणी, आ सीखां।[…]
बीजी वुस्तां सूं म्हांरै की लैणो,
म्हांनै तो अपणास चाहीजै।
अंतस में हद घोर अंधारो,
दूर करण प्रकाश चाहीजै!![…]
मुझसे उसने पूछा होता,
मैं मस्तक पर तिलक लगाती।
घोड़ी पर बिठलाकर उसका,
चुम्बन लेती विदा कराती।
पर वह स्वतन्त्रता का राही माँ से चुप चुप चला गया।
बिन पूछे ही चला गया।।[…]
परे रहेंगे मकान व दुकान सारी यहां,
सावधानी मनमानी काम नहीं आएगी।
कारखाने व खजाने जड़े ही रहेंगे मीत,
माया संची जो तो तेरे अर्थ कछु नाएगी।
खड़े ही रहेंगे अश्व रथ गज शाला बीच,
आ काया भाई उभै बांसन में समाएगी।
अच्छे काम किए है तो बात एक सत्य मनो,
कछु ना रहेगो गीध याद रह जाएगी!!
जनकवि ऊमरदान जी लालस द्वारा लगभग १०० पूर्व लिखी यह कविता आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। इसमें कवि ने अपने समय के नैतिक पतन का दो टूक शैली में वर्णन किया है।
(राग प्रभाती बिलावल)
खारी रे आ समें दुखारी, हाहा बड़ी हत्यारी रे।।टेर।।
मोटा घरां म्रजादा मिटगी, बंगळां रै सौ बारी रे।
गोला जुगळी मांय गई जद, नसल बिगड़ गई न्यारी रे।।खारी…।।1।।
होटल मांई खाणौ हिळतां, बिटळां बुरी बिचारी रे।
मांनव धर्म शास्त्र री महिमा, सुरती नहीं समारी रे।।खारी…।।2।।
घुड़दौड़ां सूं ढूंगा घसग्या, नामरदी फिर न्यारी रे।
लाखां रुपया लेखे लागा, कोई न लागी कारी रे।।खारी…।।3।।[…]
प्रतिकूलन से डरने वाले,
कभी किसी के नहीं हुए।
अनुकूलन की राह देखते,
डर डर मर मर सदा जिए।।
बहती धारा के अनुगामी,
सही किनारा कब पाते।
जहां लहर ले जाती है,
वे उसी किनारे पर जाते।।[…]